अंधी न्याय व्यवस्था

एक युवक की बाइक से एक नेता पुत्र
की बाइक हल्के से टकरा गई , युवक ने
माफी भी माँग ली.... लेकिन नेता पुत्र
ने उसे सबक सिखाने की ठानी।

एक दिन नेता पुत्र अपने दोस्तों के साथ
बाइक से जा रहा था कि उसे वह युवक
दिखाई दिया....!!

वह अपने दोस्तों के साथ उसके
पीछा करने
लगा और अपनी बाइक उसके बराबर
चलाने लगा....

नेतापुत्र उस युवक की बाइक को पैर से
धक्का देने ही वाला था कि नेतापुत्र
की बाइक फिसल गई और नेतापुत्र के
सिर में गम्भीर चोट लग गई और उस युवक को
अन्य लड़कों ने पकड़ लिया और पुलिस के हवाले
कर दिया...

नेतापुत्र को अस्पताल में
भर्ती कराया गया लेकिन उसे
बचाया नही जा सका। अदालत में जब
उस निर्दोष युवक को पेश किया गया तब
उन नेतापुत्र के दोस्तों ने
गवाही दी (जोकि चश्मदीद थे)
कि नेतापुत्र की बाइक पर इस युवक ने
जानबूझकर पैर मारा था जिससे
उसकी मौत हुई।

चूँकि चश्मदीदों के बयानो के आधार पर
कोर्ट फैसला करता है इसलिये कोर्ट ने
भी उस निर्दोष युवक
को हत्या का दोषी मानते हुऐ
फाँसी की सजा सुनाई...!!!

जिस दिन उस निर्दोष युवक को जब
फांसी दी जाने लगी तो जेलर ने
उसकी अंतिम इच्छा पूछी -
"तुम्हारी मरने से पूर्व कोई
इच्छा बताओ ?

" युवक-: " क्या आप पूरी कर देंगे ?"

जेलर-: " पूरा प्रयास करेंगे !

युवक-: "तो सुनिए और कान खोलकर सुनिए , मै
मरने से पहले अपनी दोनों आँखें अंधी न्याय
व्यवस्था को दान देना चाहता हूँ!!!