लाजवाब गजल

÷÷÷÷÷ क्या बात है ÷÷÷÷÷

कुछ परिंदे भी जानते हैं बहार और पतझड़
झोपड़ियों में कभी भी ये कबूतर
नहीं आते  l

इलम सीखते चींटी से भी घर बनाने का
तो बेघरों में कभी भी यह बंदर नहीं आते  l

इस इश्क में है ज़िंदगी ना मौत जो जानते
तो साँपों के गले में कभी छछूंदर नहीं आते  l

और जो ये भारत ना होता सोने
की चिड़िया
तो इसे लूटने को हज़ारों सिकंदर
नहीं आते  l

गर खुदा जानता ये दिल है आईने
सा नाज़ुक
तो मेरे हिस्से में कभी इतने पत्थर
नहीं आते  l

जहां पहुंच के मिल गयी थी जन्नत हमको
अब तो ख्वाब में भी ऐसे मंज़र नहीं आते  l

भूंख में ही तलाश होती है निवाले
की सबको
सुबह के वक्त काटने कभी ये मच्छर
नहीं आते  l

हम दिल के दिए जलाते हैं तूफ़ानो में
ही ''संजू ''
यूँ सबकी ही ज़िंदगी में रोज़
बवंडर नहीं आते l

-संजीव शर्मा