♦ कर्ण की दानवीरता ♦

जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य करते थे , तब वे काफी दान आदि दिया करते थे। पांडवों को इसका अभिमान होने लगा। भीम व अर्जुन ने श्रीकृष्ण के समक्ष युधिष्ठिर की प्रशंसा शुरू की कि वे कितने बड़े दानी हैं। लेकिन कृष्ण ने उन्हें बीच में ही टोककर कहा , " हमने कर्ण जैसा दानवीर कहीं नहीं देखा। " पांडवों को यह बात पसंद नहीं आई। तब कृष्ण ने कहा कि समय आने पर सिद्ध कर दूंगा।
 
कुछ ही दिनों बाद एक याचक युधिष्ठिर के पास आया और बोला, " महाराज ! मैं आपके राज्य में रहने वाला एक ब्राह्मण हूं और मेरा व्रत है कि बिना हवन किए कुछ भी नहीं खाता-पीता। कई दिनों से मेरे पास यज्ञ के लिए चंदन की लकड़ी नहीं है। यदि आपके पास हो तो, मुझ पर कृपा करें, अन्यथा हवन तो पूरा ही नहीं होगा, मैं भी भूखा-प्यासा मर जाऊंगा।"
 
युधिष्ठिर ने तुरंत कोषागार के कर्मचारी को बुलवाया और कोष से चंदन की लकड़ी देने का आदेश दिया। संयोग से कोषागार में सूखी लकड़ी नहीं थी। तब महाराज ने भीम व अर्जुन को चंदन की लकड़ी का प्रबंध करने का आदेश दिया। लेकिन काफी दौड़- धूप के बाद भी सूखी लकड़ी की व्यवस्था नहीं हो पाई। तब ब्राह्मण को हताश होते देख कृष्ण ने कहा, "मेरे अनुमान से एक स्थान पर आपको लकड़ी मिल सकती है, आइए मेरे साथ।"
 
ब्राह्मण यह सुनकर खुश हो गए। बोला कहां पर ? तब भगवान ने अर्जुन व भीम का भी वेष बदलकर ब्राह्मण के संग लेकर चल दिए।। कृष्ण सबको लेकर कर्ण के महल में गए। सभी ब्राह्मणों के वेष में थे, अत: कर्ण ने उन्हें पहचाना नहीं। याचक ब्राह्मण ने जाकर लकड़ी की अपनी वही मांग दोहराई। कर्ण ने भी अपने भंडार के मुखिया को बुलवा कर सूखी लकड़ी देने के लिए कहा, वहां भी सूखी लकड़ी नहीं थी।
 
ऐसे में ब्राह्मण निराश हो गया। अर्जुन और भीम प्रश्न-सूचक निगाहों से भगवान कृष्ण को ताकने लगे। लेकिन श्री कृष्ण अपनी चिर-परिचित मुस्कान लिए चुपचाप बैठे रहे। तभी कर्ण ने कहा, "हे ब्राह्मण देव! आप निराश न हों, एक उपाय है मेरे पास।" उसने अपने महल के खिड़की-दरवाजों में लगी चंदन की लकड़ी काट-काट कर ढेर लगा दी, फिर ब्राह्मण से कहा, "आपको जितनी लकड़ी चाहिए, कृपया ले जाइए।" कर्ण ने लकड़ी ब्राह्मण के घर पहुंचाने का प्रबंध भी कर दिया। ब्राह्मण कर्ण को आशीर्वाद देता हुआ लौट गया। पांडव व श्रीकृष्ण भी लौट आए। 

वापस आकर भगवान ने कहा, "साधारण अवस्था में दान देना कोई विशेषता नहीं है, असाधारण परिस्थिति में किसी के लिए अपने सर्वस्व को त्याग देने का ही नाम दान है। अन्यथा हे युधिष्ठिर! चंदन की लकड़ी के खिड़की-द्वार तो आपके महल में भी थे।"

♦ सलाह ♦

एक व्यक्ति ने अगरबत्ती की दुकान खोली ! नाना प्रकार की अगरबत्तियां थीं ! उसने दुकान के बाहर एक साइन बोर्ड लगाया - "यहाँ सुगन्धित अगरबत्तियां मिलती हैं ! "

दुकान चल निकली ! एक दिन एक ग्राहक उसके दुकान पर आया और कहा - आपने जो बोर्ड लगा रखा है , उसके एक विरोधाभास है ! भला अगरबत्ती सुगंधित नहीं होंगी तो क्या दुर्गन्धित होंगी ? 

उसकी बात को उचित मानते हुए विक्रेता ने बोर्ड से सुगंधित शब्द मिटा दिया ! अब बोर्ड इस प्रकार था - "यहाँ अगरबत्तियां मिलती हैं ! "

इसके कुछ दिनों के पश्चात किसी दूसरे सज्जन ने उससे कहा - आपके बोर्ड पर "यहाँ " क्यों लिखा है ? दुकान जब यहीं है तब यहाँ लिखना निरर्थक है ! 
इस बात को भी अंगीकार कर विक्रेता ने बोर्ड पर यहाँ शब्द मिटा दिया ! अब बोर्ड था - अगरबत्तियां मिलती हैं ! 

पुनः उस व्यक्ति को एक रोचक परामर्श मिला - अगरबत्तियां मिलती हैं का क्या प्रयोजन ? अगरबत्ती लिखना ही पर्याप्त है ! अतः वह बोर्ड केवल एक शब्द के साथ रह गया - "अगरबत्ती "

विडम्बना देखिये ! एक शिक्षक ग्राहक बन कर आये और अपना ज्ञान वमन किया - दुकान जब मात्र अगरबत्तियों की है तो इसका बोर्ड लगाने का क्या लाभ ? लोग तो देखकर ही समझ जायेंगे कि मात्र अगरबत्तियों की दुकान है ! इस प्रकार वह बोर्ड ही वहाँ से हट गया ! 

कालांतर में दुकान की बिक्री मंद पड़ने लगी और विक्रेता चिंतित रहने लगा ! एक दिन में उसका पुराना मित्र उसके पास आया ! अनेक वर्षों के उपरांत वे मिल रहे थे ! मित्र से इसकी स्थापना उसके चिंता ना छिप सकी और उसने इसका कारण पूछा तो व्यवसाय के गिरावट का पता चला ! 

मित्र ने सब कुछ ध्यान से देखा और कहा - तुम बिल्कुल ही मूर्ख हो ! इतनी बड़ी दुकान खोल ली और बाहर एक बोर्ड नहीँ लगा सकते थे - यहाँ सुगंधित अगरबत्तियां मिलती हैं !

♦ शिक्षा ♦

आपको जीवन में प्रत्येक पग पर सुझाव देने वाले मिलेंगे जो उस विषय के विशेषज्ञ नहीं हैं परंतु लगेगा कि सारा विज्ञान, दर्शनशास्त्र , समाजशास्त्र इत्यादि उनमें अंतर्निहित है ! आप ऐसे व्यक्तियों की सुनेंगे या अनुपालन करेंगे तो आपकी स्थिति भी उस विक्रेता की भाँति हो जायेगी ! आप किसी भी विषय या निराकरण के लिये उससे सम्बन्धित विशेषज्ञों की सुने या अपने अन्तह्चेतन की क्योंकि आपको आपसे अधिक कोई नहीं जानता !

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।

♦ हमेशा अच्छा करो l ♦

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी। वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था।

एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रास्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।"

दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा। वो कुबड़ा रोज रोटी लेकर जाता रहा और इन्हीं शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।"

वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की- "कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका।"

एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली- "मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।" और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दीं।

हर रोज़ की तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया। इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है।

हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र की सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी।

ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है। वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है, अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है। वह पतला और दुबला हो गया था। उसके कपड़े फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था।

जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ। आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया, मैं मर गया होता..!

लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था। उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया। भूख के मारे मेरे प्राण निकल रहे थे। मैंने उससे खाने को कुछ माँगा, उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है, सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो।"

जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया। उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था-
" जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा। "

♦ शिक्षा ♦

हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो।

सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

♦ अच्छी आदत का प्रभाव ♦


एक छोटी सी अच्छी आदत आपकी सोच बदल सकती हैं,  और सभी बाधाएं दूर हो सकती हैं।

एक प्रचलित कथा के अनुसार पुराने समय में दो दोस्त थे। बचपन में दोनों साथ पढ़ते और खेलते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद दोनों दोस्त अपने अपने जीवन में व्यस्त हो गए। एक दोस्त ने खूब मेहनत की और बहुत पैसा कमा लिया। जबकि दूसरा दोस्त बहुत आलसी था। वह कुछ भी काम नहीं करता था। उसका जीवन ऐसे ही गरीबी में कट रहा था। एक दिन अमीर व्यक्ति अपने बचपन के दोस्त से मिलने गया। अमीर व्यक्ति ने देखा की उसके दोस्त की हालत बहुत खराब है, उसका घर भी बहुत गंदा था। 

गरीब दोस्त ने बैठने के लिए जो कुर्सी दी, उस पर धूल थी। अमीर व्यक्ति ने कहा कि तुम अपना घर इतना गंदा क्यों रखते हो? गरीब ने जवाब दिया कि घर साफ करने से कोई लाभ नहीं है, कुछ दिनों में ये फिर से गंदा हो जाता है। अमीर ने उसे बहुत समझाया कि घर को साफ रखना चाहिए, लेकिन वह नहीं माना। जाते समय अमीर व्यक्ति ने गरीब दोस्त को एक बहुत ही सुंदर गुलदस्ता उपहार में दिया। गरीब ने वह गुलदस्ता अलमारी के ऊपर रख दिया। इसके बाद जब भी कोई व्यक्ति उस गरीब के घर आता तो उसे सुंदर गुलदस्ता दिखता, वे कहते कि गुलदस्ता तो बहुत सुंदर है, लेकिन घर इतना गंदा है। 

बार-बार एक ही बात सुनकर गरीब ने सोचा कि ये अलमारी साफ कर देता हूं, उसने अलमारी साफ कर दी। अब उसके घर आने वाले लोगों ने कहा कि गुलदस्ता बहुत सुंदर, अलमारी भी साफ है, लेकिन पूरा घर गंदा है। ये बातें सुनकर गरीब व्यक्ति ने अलमारी के साथ वाली दीवार साफ कर दी। अब जो भी लोग उसके घर आते सभी उसी कोने में बैठना पसंद करते थे, क्योंकि वहां साफ-सफाई थी। गरीब व्यक्ति ने एक दिन गुस्से में पूरा घर साफ कर दिया और दीवारों की पुताई भी करवा दी। धीरे-धीरे उसकी सोच बदलने लगी और उसने काम करना शुरू कर दिया।

♦ प्रसंग की सीख ♦

इस प्रसंग की सीख यह है कि हमारी एक छोटी सी अच्छी आदत हमारी सोच बदल सकती है, जिससे हमारा जीवन बदल सकता है। अच्छी आदतों से बड़ी-बड़ी बाधाएं भी दूर की जा सकती हैं।

♦ उत्साह का संचार ♦

एक राजा के पास कई हाथी थे लेकिन एक हाथी बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी,समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था।

बहुत से युद्धों में वह भेजा गया था और वह राजा को विजय दिलाकर ही वापस लौटता था इसलिए वह महाराज का सबसे प्रिय हाथी था।

समय गुजरता गया l और एक समय ऐसा भी आया, जब वह वृद्ध दिखने लगा।अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर पाता था। इसलिए अब राजा उसे युद्ध क्षेत्र में भी नहीं भेजते थे।

एक दिन वह सरोवर में जल पीने के लिए गया, लेकिन वहीं कीचड़ में उसका पैर धँस गया और फिर धँसता ही चला गया।

उस हाथी ने बहुत कोशिश की, लेकिन वह उस कीचड़ से स्वयं को नहीं निकाल पाया।

उसकी चिंघाड़ने की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह हाथी संकट में है।

हाथी के फँसने का समाचार राजा तक भी पहुँचा।
 
राजा समेत सभी लोग हाथी के आसपास ईकट्ठे हो गए और विभिन्न प्रकार के प्रयत्न उसे निकालने के लिए करने लगे । लेकिन बहुत देर तक प्रयास करने के उपरांत कोई मार्ग नहीं निकला । 

तभी गौतम बुद्ध मार्गभ्रमण कर रहे थे। राजा और सारा मंत्रीमंडल तथागत गौतम बुद्ध के पास गये और अनुरोध किया कि आप हमें इस विकट परिस्थिति में मार्गदर्शन करें । गौतम बुद्ध ने सबसे पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े बजाए जाएँ।

सुनने वालों को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा ? जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजने प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृतप्राय हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा।

पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया।

गौतम बुद्ध ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी।

👉🏼 जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखें और निराशा को हावी न होने दें। 

👉🏼 कभी कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है । 
 
👉🏼 "सकारात्मक सोच ही आदमी को "आदमी" बनाती है । उसे अपनी मंजिल  तक ले जाती है।

👉🏼 हमारे परिवार मे भी किसी को यदि कोई बिमारी आये और वे डर जाये तो परिवार के दूसरे सदस्यो को भी ये पता होना चाहिये कि वो बिमार व्यक्ति मे उत्साह का संचार कैसे करे । वो कौन सी चीजे है जिसके चलते उसमे उत्साह का संचार हो या उसकी सोच मे सकारात्मक उर्जा आये । जैसे कि उसके साथ टीवी मे मनपसंद खेल देखना । उसके साथ चेस जैसी इनडोर गेम खैलना । उसके साथ शुरवीरता जगानेवाली एवं हंसी के ठहाके से भरपूर फिल्म देखना आदि। 

👉🏼 आप हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण , स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें ।

♦ હકારાત્મક બનો ♦

એક જંગલ હતું.તેંમાં એક હરણી ગર્ભવતી હતી અને તેનું બચ્ચુ જન્મવાની તૈયારીમાં જ હતું. દૂર દેખાઈ રહેલું નદી પાસેનું એક ઘાસનું મેદાન તેને સુરક્ષિત જણાતા તેણે ત્યાં જઈને બચ્ચાને જન્મ આપવાનો નિર્ણય કર્યો. તે ધીમે ધીમે ત્યાં જવા આગળ વધી અને ત્યાં જ તેને પ્રસૂતિની પીડા શરૂ થઈ ગઈ. 

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તેજ ક્ષણે અચાનક તે વિસ્તારના આકાશમાં કાળા ડિબાંગ વાદળા છવાઈ ગયા અને વીજળીનો ગડગડાટ શરૂ થઈ ગયો. વીજળી પડતા ત્યાં દાવાનળ ફેલાઈ ગયો. 

હરણીએ ગભરાયેલી નજરે ડાબી બાજુ જોયું તો ત્યાં તેને એક શિકારી પોતાની તરફ તીરનું નિશાન તાકતો દેખાયો. તે જમણી તરફ ફરી ઝડપથી તે દિશામાં આગળ વધવા ગઈ ત્યાં તેને એક ભૂખ્યો વિકરાળ સિંહ પોતાની દિશામાં આવતો દેખાયો. 

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આ સ્થિતિમાં ગર્ભવતી હરણી શું કરી શકે ? કારણ તેને પ્રસૂતિની પીડા શરૂ થઈ ચૂકી છે. 

તમને શું લાગે છે ? તેનું શું થશે ? શું હરણી બચી જશે ? શું તે પોતાના બચ્ચાને જન્મ આપી શકશે ? શું તેનું બચ્ચુ બચી શકશે ? કે પછી દાવાનળ માં બળી જઈને બધું ભસ્મીભૂત થઈ જશે ? 

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શું હરણી ડાબી તરફ ગઈ હશે ? ના, ત્યાં તો શિકારી તેની તરફ બાણનું નિશાન તાકી ઊભો હતો. 

શું હરણી જમણી તરફ ગઈ હશે ? ના , ત્યા સિંહ તેને ખાઈ જવા તૈયાર હતો.

શું હરણી આગળ જઈ શકે તેમ હતી ? ના, ત્યાં ઘસમસતી નદી તેને તાણી જઈ શકે એમ હતી. 

શું હરણી પાછળ જઈ શકે એમ હતી ? ના ત્યાં દાવાનળ તેને બાળીને ભસ્મ કરી શકે તેમ હતો. 

👉🏼 જવાબ :- આ ઘટના " સ્ટોકેઈસ્ટીક પ્રોબેબિલીટી થિયરી " નું એક ઉદાહરણ છે. 

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એ હરણી કંઈ જ કરતી નથી.  તે માત્ર પોતાના બચ્ચાને જન્મ આપવા પર જ ધ્યાન કેન્દ્રિત કરે છે. એ ક્ષણ પછીની ફક્ત બીજી ક્ષણમાં જ આ પ્રમાણે ઘટનાક્રમ બનવા પામે છે. એક ક્ષણમાં શિકારી પર વીજળી પડે છે અને તે અંધ બની જાય છે. આકસ્મિક બનેલી આ ઘટનાને લીધે શિકારી નિશાન ચૂકી જાય છે અને તીર હરણીની બાજુમાંથી પસાર થઇ જાય છે. 

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તીર સિંહના શરીરમાં ઘુસી જાય છે અને તે બૂરી રીતે ઘાયલ થઈ જાય છે. એ જ ક્ષણે મૂશળધાર વરસાદ વરસે છે અને દાવાનળને બૂઝાવી નાંખે છે. 

એ જ ક્ષણે હરણી એક સુંદર અને તંદુરસ્ત બચ્ચાને જન્મ આપે છે. 

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👉🏼 આપણા સૌના જીવનમાં એવી કેટલીક ક્ષણો આવે છે જ્યારે બધી દિશાઓમાંથી નકારાત્મક વિચારો અને સંજોગો આપણને ઘેરી વળે છે. એમાંના કેટલાક વિચારો તો એટલા શક્તિશાળી હોય છે કે તે આપણા પર હાવી થઈ જાય છે અને આપણને શૂન્યમનસ્ક બનાવી મૂકે છે પણ જીવનમાં એક જ ક્ષણમાં પરિસ્થિતિ તદ્દન બદલાઈ શકે છે. 

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👉🏼 આ ઘટનાનો સાર માત્ર એટલો જ છે કે જ્યારે આપણને ચારે બાજુ નકારાત્મકતા જોવા મળે તો પણ દ્રઢ નિશ્ચય અને હકારાત્મક અભિગમ રાખીએ તો સફળતા અવશ્ય મળે જ છે.