♠ સત્કર્મોનો યશ ♠

આ વાત તે સમયની છે જ્યારે સિકંદર યુનાનનો બાદશાહ હતો. સિકંદર કોઇપણ વિદ્યામાં પારંગત કલાકારોની કદર કરતો હતો.તે પોતાના દરબારમાં આવતા દરેક કલાકારનું સ્વાગત અને સન્માન કરતો હતો.એક દિવસ સિકંદરને વિચાર આવ્યો કે રાજધાનીના કોઇ મોટા બગીચામાં સ્વર્ગીય અને વર્તમાન તમામ મહાપુરૂષોની મૂર્તિઓ બનાવીને રાખવામાં આવે જેથી આવતાં જતા દરેક લોકોને તેમના વિશે જાણકારી મળે અને તેમની ખ્યાતિ પ્રસરે.પોતાના વિચારને કાર્યાન્વિત કરાવવા માટે તેમણે તાત્કાલિક કારીગરોને બોલાવ્યા અને કાર્ય શરૂ કરવાનો આદેશ આપ્યો.કારીગરોએ ખૂબજ મહેનતથી મૂર્તિઓ બનાવી અને બગીચામાં રાખી દીધી.એક દિવસ પડોશી રાજ્યનો મહામંત્રી રાજકીય મહેમાન તરીકે ત્યાં આવ્યો.સિકંદર તેમને મૂર્તિઓવાળો બગીચો બતાવવા લઇ ગયો. સિકંદરે મહેમાનને દરેક મૂર્તિ બતાવીને તેનો પરિચય આપ્યો.

અંતે મહામંત્રીએ પૂછ્યું કે મહારાજ,તમારી મૂર્તિ ક્યાય દેખાતી નથી ? તે પણ અહીયા હોવી જોઇએ ?

સિકંદરે પૂછ્યું કે મારી મૂર્તિ અહીંયા લગાવું અને આવનારી પેઢી પૂછે કે આ કોની મૂર્તિ છે તેના કરતાં મારી મૂર્તિ અહીંયા ન હોય અને તેઓ પૂછે કે સિકંદરની મૂર્તિ અહીંયા કેમ નથી ?

→ આ પ્રસંગનો સાર એટલોજ છે મિત્રો કે યશ પોતાના સત્કર્મોથી મળે છે.તેથી હંમેશા સત્કર્મો કરવાં જોઇએ.

♠ હમદર્દ હ્રદય ♠

♥ એક ખૂબ જ ચિંતનાત્મક બોધકથા છે.અંત સુધી વાંચજો અને શેર જરૂર કરજો ♥

રશિયાના પ્રમુખ લેનિન એકવાર બિમાર પડ્યા.ડોક્ટરોએ તેમના રોગનું નિદાન કર્યું અને જાહેર કર્યું કે લેનિન સારી અને મોંઘી દવા લે તોજ તે આ બિમારીમાંથી ઊભા થઇ શકશે. પણ લેનિને તો સારી અને મોંઘી દવાઓ લેવાનો સાફ ઇન્કાર કર્યો અને કહ્યું : ''મારા કરોડો દેશબાંધવોને જે મોંઘીદાટ કિંમતની દવાઓ લેવાનું પોષાતું નથી તે દવાઓ મારાથી લઇ શકાય નહિ.''

તેમણે મોંઘીદાટ કિંમતની દવાઓ ન જ લીધી.આથી તેમની પત્ની કૃપ્સકાયાએ લેનિનને ખબર ન પડે એ રીતે દવાઓ બિસ્કીટમાં ભેળવીને આ સાથે આપવા માંડી! તેથીજ લેનિન માંદગીમાંથી બેઠા થયાં.

થોડાં દિવસ બાદ તેમની પત્ની કૃપ્સકાયાએ આ વાત લેનિનને વાતવાતમાં કહી દીધી.

લેનિન રોષે ભરાયાં.તેમણે કહ્યું : ''તે મને મોંઘીદાટ કિંમતની દવાઓ આપીને મારા દેશબાંધવોથી એકલો અટુલો બનાવી દીધો છે.આ તારો એક દેશ માટે મોટો દેશદ્રોહ જ ગણાય.તને એ બદલ સજા મળવી જ જોઇએ.''

અને બીજે દિવસે લેનિન અદાલતમાં ગયા અને પોતાની પત્ની કૃપ્સકાયા સામે કેસ માંડ્યો.

અદાલતમાં પોતાની પત્ની વિરુદ્ધ કેસ ચાલ્યો. કૃપ્સકાયાને ગુનેગાર ઠેરવવામાં આવી અને તેને ત્રણ મહિનાની કેદની સજા ફરમાવવામાં આવી.

પણ ફેંસલામાં અદાલતે જણાવ્યું : '' ખરી રીતે કૃપ્સકાયા ગુનેગાર જરૂર છે છતાં તેણે જે કંઇ કર્યુ તે રશિયાના એક તારણહારની અમૂલ્ય જિંદગી બચાવવાં માટે જ કર્યું છે.ખરેખર તો તેણે મહાન લેનિનનું જીવન બચાવીને સમગ્ર રશિયા પર મોટો ઉપકાર કર્યો છે.રાષ્ટ્રની મોટી સંપત્તિરૂપ લેનિનનો જીવ બચાવીને તેણે આખા રશિયા માટે એક કલ્યાણકારી કાર્ય કર્યું છે.''

લાખો રશિયનો આ કાર્ય માટે કૃપ્સકાયાને જ્યારે આશીર્વાદ આપે છે.ત્યારે તે લોકલાગણીને ધ્યાનમાં લઇને આ નામદાર કોર્ટ કૃપ્સકાયાને ફરમાવેલી સજા માફ કરે છે.

લેનિન અને કૃપ્સકાયા આનંદવિભોર થઇ ઘેર પાછા ફર્યાં.

♠ वक्त पर फैसला ♠

||||  उबलते पानी मे मेंढक  ||||

अगर मेंढक को गर्मा गर्म उबलते पानी में डाल दें तो वो छलांग लगा कर बाहर आ जाएगा और उसी मेंढक को अगर सामान्य तापमान पर पानी से भरे बर्तन में रख दें और पानी धीरे धीरे गरम करने लगें तो क्या होगा ?

मेंढक फौरन मर जाएगा ?
जी नहीं....

ऐसा बहुत देर के बाद होगा...
दरअसल होता ये है कि जैसे जैसे पानी का तापमान बढता है, मेढक उस तापमान के हिसाब से अपने शरीर को Adjust करने लगता है।

       पानी का तापमान, खौलने लायक पहुंचने तक, वो ऐसा ही करता रहता है।अपनी पूरी उर्जा वो पानी के तापमान से तालमेल बनाने में खर्च करता रहता है।लेकिन जब पानी खौलने को होता है और वो अपने Boiling Point तक पहुंच जाता है, तब मेढक अपने शरीर को उसके अनुसार समायोजित नहीं कर पाता है, और अब वो पानी से बाहर आने के लिए, छलांग लगाने की कोशिश करता है।

       लेकिन अब ये मुमकिन नहीं है। क्योंकि अपनी छलाँग लगाने की क्षमता के बावजूद , मेंढक ने अपनी सारी ऊर्जा वातावरण के साथ खुद को Adjust करने में खर्च कर दी है।

       अब पानी से बाहर आने के लिए छलांग लगाने की शक्ति, उस में बची ही नहीं I वो पानी से बाहर नहीं आ पायेगा, और मारा जायेगा I

          मेढक क्यों मर जाएगा ?

          कौन मारता है उसको ?

          पानी का तापमान ?

          गरमी ?

          या उसके स्वभाव से ?

      मेढक को मार देती है, उसकी असमर्थता सही वक्त पर ही फैसला न लेने की अयोग्यता । यह तय करने की उसकी अक्षमता कि कब पानी से बाहर आने के लिये छलांग लगा देनी है।

      इसी तरह हम भी अपने वातावरण और लोगो के साथ सामंजस्य बनाए रखने की तब तक कोशिश करते हैं, जब तक की छलांग लगा सकने कि हमारी सारी ताकत खत्म नहीं हो जाती ।

     ये तय हमे ही करना होता है कि हम जल मे मरें या सही वक्त पर कूद निकलें।

(विचार करें, गलत-गलत होता है, सही-सही, गलत सहने की सामंजस्यता हमारी मौलिकता को ख़त्म कर देती है)

     अन्याय करने से ज्यादा अन्याय सहने वाला दोषी होता है, उदाहरण भीष्म पितामह ।
                            - श्री कृष्ण

आप स्वयं विचार करें.......

सुप्रभात एवं सुव्यवस्थित जीवन की कामना । । ।

♠ राजा की तीन सीख ♠

बहुत समय पहले की बात है , सुदूर दक्षिण में किसी प्रतापी राजा का राज्य था . राजा के तीन पुत्र थे, एक दिन राजा के मन में आया कि पुत्रों को को कुछ ऐसी शिक्षा दी जाये कि समय आने पर वो राज-काज सम्भाल सकें.

इसी विचार के साथ राजा ने सभी पुत्रों को दरबार में बुलाया और बोला , “ पुत्रों , हमारे राज्य में नाशपाती का कोई वृक्ष नहीं है , मैं चाहता हूँ तुम सब चार-चार महीने के अंतराल पर इस वृक्ष की तलाश में जाओ और पता लगाओ कि वो कैसा होता है ?” राजा की आज्ञा पा कर तीनो पुत्र बारी-बारी से गए और वापस लौट आये .

सभी पुत्रों के लौट आने पर राजा ने पुनः सभी को दरबार में बुलाया और उस पेड़ के बारे में बताने को कहा।
पहला पुत्र बोला , “ पिताजी वह पेड़ तो बिलकुल टेढ़ा – मेढ़ा , और सूखा हुआ था .”

“ नहीं -नहीं वो तो बिलकुल हरा –भरा था , लेकिन शायद उसमे कुछ कमी थी क्योंकि उसपर एक भी फल नहीं लगा था .”, दुसरे पुत्र ने पहले को बीच में ही रोकते हुए कहा .
फिर तीसरा पुत्र बोला , “ भैया , लगता है आप भी कोई गलत पेड़ देख आये क्योंकि मैंने सचमुच नाशपाती का पेड़ देखा , वो बहुत ही शानदार था और फलों से लदा पड़ा था .”

और तीनो पुत्र अपनी -अपनी बात को लेकर आपस में विवाद करने लगे कि तभी राजा अपने सिंघासन से उठे और बोले , “ पुत्रों , तुम्हे आपस में बहस करने की कोई आवश्यकता नहीं है , दरअसल तुम तीनो ही वृक्ष का सही वर्णन कर रहे हो . मैंने जानबूझ कर तुम्हे अलग- अलग मौसम में वृक्ष खोजने भेजा था और तुमने जो देखा वो उस मौसम के अनुसार था.
मैं चाहता हूँ कि इस अनुभव के आधार पर तुम तीन बातों को गाँठ बाँध लो :

पहली , किसी चीज के बारे में सही और पूर्ण जानकारी चाहिए तो तुम्हे उसे लम्बे समय तक देखना-परखना चाहिए . फिर चाहे वो कोई विषय हो ,वस्तु हो या फिर कोई व्यक्ति ही क्यों न हो ।

दूसरी , हर मौसम एक सा नहीं होता , जिस प्रकार वृक्ष मौसम के अनुसार सूखता, हरा-भरा या फलों से लदा रहता है उसी प्रकार मनुषय के जीवन में भी उतार चढाव आते रहते हैं , अतः अगर तुम कभी भी बुरे दौर से गुजर रहे हो तो अपनी हिम्मत और धैर्य बनाये रखो , समय अवश्य बदलता है।

और तीसरी बात , अपनी बात को ही सही मान कर उस पर अड़े मत रहो, अपना दिमाग खोलो , और दूसरों के विचारों को भी जानो। यह संसार ज्ञान से भरा पड़ा है , चाह कर भी तुम अकेले सारा ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते , इसलिए भ्रम की स्थिति में किसी ज्ञानी व्यक्ति से सलाह लेने में संकोच मत करो। “

♠ नि:स्वार्थ कर्म ♠

एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए।

राजन ने उनसे पुछा- “महात्मन! आप कौन हैं?”

वृद्ध ने कहा- “राजन मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख!”

राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत, तीर्थ, कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए, बगीचे आदि भी बनवाए थे। राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था। वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए। वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ, सब एक-एक करके सूख गए, बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए । राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया।। फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया। सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ, वह खँडहर में बदल गया। वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ, तीर्थ, कथा, पूजन, दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों, आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए।।राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया।

सत्य ने कहा-“ राजन! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं, उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है, धर्म का निर्वहन नहीं।। सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किये जाते हैं, उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है।”

इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए। राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया ,जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश-कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया।

मित्रों , सच ही तो है , सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नज़रिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता। हमने देखा है कई बार लोग सिर्फ अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर आने के लिए झाड़ू उठा लेते हैं या किसी गरीब बस्ती का दौरा कर लेते हैं , ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है , फिर वो चाहे हज़ारों लोगों की की गयी हो या बस किसी एक व्यक्ति की।

♠ संसार - एक शीशमहल ♠

एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा,
'गुरुदेव,आपकी दृष्टि में यह संसार क्या है?

इस पर गुरु ने एक कथा सुनाई।

'एक नगर में एक शीशमहल था। महल की हरेक दीवार पर सैकड़ों शीशे जडे़ हुए थे। एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया। महल के भीतर उसे सैकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दुखी लग रहे थे। उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा। उसे सैकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे। वह डरकर वहां से भाग गया कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि इससे बुरी कोई जगह नहीं हो सकती।

कुछ दिनों बाद
एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा। वह खुशमिजाज और जिंदादिल था। महल में घुसते ही उसे वहां सैकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे। उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा तो उसे सैकड़ों कुत्ते
खुशी जताते हुए नजर आए।
उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। जब वह महल से बाहर आया तो उसने महल को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ स्थान और वहां के अनुभव को अपने जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना।
वहां फिर से आने के संकल्प के साथ वह वहां से रवाना हुआ।'

कथा समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा..

'संसार भी ऐसा ही शीशमहल है जिसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है। जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं, वे यहां से हर प्रकार के सुख और आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं।
जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं उनकी झोली में दुख और कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता.....।'

♠ સાચી ભિક્ષા ♠

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એક સાધુ ભિક્ષા માંગતા એક ગૃહસ્થના ઘરે ગયાં.તેમણે ભિક્ષા માટે બૂમ પાડી,પરંતું ગૃહસ્થ ઘરમાં હાજર નહોતા.તેની સ્ત્રી અન્ય કાર્યમાં હોવાથી કોઇ
ભિક્ષા ન આપી શક્યાં.થોડીવાર પછી સાધુ ત્યાંથી આગળ ચાલ્યાં.દૂરથી તે ગૃહસ્થે સાધુને પોતાના ઘર પાસેથી પસાર થતાં જોઇને પૂછ્યું કે, આપ મારા ઘરેથી ભિક્ષા લઇને આવ્યાં? સાધુએ હા પાડી.ઘરે ગયા પછી ગૃહસ્થને ખબર પડી કે સાધુનેે ભિક્ષા અપાઇ નહોતી.બીજા દિવસે તે સમયે ગૃહસ્થ હાજર રહ્યા અને સાધુ આવ્યા એટલે પૂછ્યું કેે ગઇકાલે તમે ખોટી હા કેમ પાડી હતી કે  ભિક્ષા મળી ગઇ? સાધુએ કહ્યુું,ભાઇ મોટું કામ ભિક્ષા માટે ફરવાનું છે.કોઇ લોટ આપે,કોઇ તિરસ્કાર આપે,હું તો નિર્લેેપભાવે જે મળે તેે સ્વીકારુ  છુું.લોટ મળે તો શરીર માટે કામ લાગે છે,તે સિવાય મનની ભિક્ષા મળે છે.ગમે તેવા સંજોગોમાં પણ મનને ગુસ્સે ન થવા  દેવું તે શિખવા મળે છે.આથી જ મે તનેે કહ્યુુ હતું કે મને ભિક્ષા મળી ગઇ.

અપમાન,ક્રોધ,વગેરે સામે મનને શાંત રાખવાની ભિક્ષા મળે છે તે બદલ પણ હુું તો બધાનો આભાર જ માનું  છું.સાધુની વાત સાંભળી ગૃહસ્થને પણ સારો બોધપાઠ મળ્યો.

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♠ સમયપાલન ♠

અમેરિકાના પ્રથમ રાષ્ટ્રપતિ જ્યોર્જ વોશિંગ્ટન સમયના ખૂબ જ પાબંદ હતાં.દરેક કામને સમયસર કરવું એ તેમનો સ્વભાવ હતો.તેઓ દરેક કાર્યક્રમમાં પણ સમયસર પહોંચી જતા હતાં.એક દિવસ તેમણે પોતાના મિત્રોને ભોજન માટે નિમંત્ર્યાં હતાં.તેમણે દિવસના ત્રણ વાગ્યાનો સમય રાખ્યો હતો. વોશિંગ્ટનના મિત્રો ત્રણ વાગ્યે પહોંચી શક્યા નહિ તો તેમણે જમવાનું શરૂ કરી દીધું.મિત્રો આવ્યા તો તેમને આ જોઇને ખોટું લાગ્યું. વોશિંગ્ટને કહ્યું,'' તમે મને માફ કરજો.જમવાનું ટેબલ પર પીરસતાં પહેલાં મારો રસોઇયો એમ પૂછતો નથી કે મહેમાન આવ્યા કે નહિ એ તો માત્ર એટલું જ પૂછે છે કે સમય થયો છે કે નહિ ? ''

વોશિંગ્ટનની વાતનો સંકેત સમજીને તેમના મિત્રો શરમથી પાણી પાણી થઇ ગયાં.સમયપાલન આજનાં ઝડપી યુગની પ્રાથમિક જરૂરિયાત છે.

પોતાના સમયને પોતાના કાર્યો પર યોગ્ય રીતે આયોજિત કરવાથી આત્મવિશ્વાસની સાથે સાથે રાષ્ટ્રનો પણ વિકાસ ગતિ મેળવે છે.