♠ शुभ - अशुभ ♠

एक बार एक महिला ने स्वामी विवेकानंद से कहा,

'‘स्वामी जी, कुछ दिनों से मेरी बायीं आंख फड़क
रही है। यह कुछ अशुभ घटने की निशानी है। कृपया मुझे कोई ऐसा तरीका बताएं जिससे कोई बुरी घटना मेरे यहां न घटे।’'

उसकी बात सुन विवेकानंद बोले, ‘देवी, मेरी नजर में तो शुभ और अशुभ कुछ नहीं होता। जब जीवन है
तो इसमें अच्छी और बुरी दोनों ही घटनाएं घटित होती हैं। उन्हें ही लोग शुभ और अशुभ से जोड़ देते हैं।’

महिला बोली,'‘पर स्वामी जी, मैंने अपने पड़ोसियों के यहां देखा है कि उनके घर में हमेशा शुभ घटता है। कभी कोई बीमारी नहीं, चिंता नहीं। जबकि मेरे यहां आए दिन कुछ न कुछ अनहोनी घटती रहती है।’

इस पर स्वामी जी मुस्करा कर बोले, ‘शुभ और अशुभ तो सोच का ही परिणाम है। कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जिसे केवल शुभ ही शुभ या केवल अशुभ कहा जा सके। जो आज शुभ मालूम पड़ती है, वही कल
अशुभ हो सकती है। जैसे एक कुम्हार ने बर्तन बनाकर सुखाने के लिए रखे हैं और वह तेज धूप की कामना कर रहा है ताकि बर्तन अच्छी तरह सूखकर पक जाएं, दूसरी ओर एक किसान वर्षा की कामना कर रहा है ताकि फसल अच्छी हो। ऐसे में धूप और
वर्षा जहां एक के लिए शुभ है, वहीं दूसरे के लिए अशुभ। यदि वर्षा होती है तो कुम्हार के घड़े नहीं सूख
पाएंगे और यदि धूप निकलती है तो किसान की फसल अच्छी तरह नहीं पकेगी।

→ इसलिए व्यक्ति को शुभ और अशुभ का ख्याल छोड़कर केवल अपने नेक कर्मों पर ध्यान लगाना चाहिए। तभी जीवन सुखद हो सकता है।’