♠ सच्ची जीत ♠

एक गाँव में एक किसान रहता था। उसका नाम था शेरसिंह। शेरसिंह शेर-जैसा भयंकर और अभिमानी था। वह थोड़ी सी बात पर बिगड़कर लड़ाई कर लेता था। गाँव के लोगों स सीधे मुँह बात नहीं करता था। न तो वह किसी के घर जाता था और न रास्ते में मिलने पर किसी को प्रणाम करता था। गाँव के किसान भी उसे अहंकारी समझकर उससे नहीं बोलते थे।

उसी गाँव में एक दयाराम नाम का किसान आकर बस गया। वह बहुत सीधा और भला आदमी था। सबसे नम्रता से बोलता था। सबकी कुछ-न-कुछ सहायता किया करता था। सभी किसान उसका आदर करते थे और अपने कामों में उससे सलाह लिया करते थे।

गाँव के किसानों ने दयाराम से कहा-'भाई दयाराम! तुम कभी शेरसिंह के घर मत जाना। उससे दूर ही रहना। वह बहुत झगड़ालू है।'

दयाराम हँसकर कहा-'शेरसिंह ने मुझसे झगड़ा किया तो मैं उसे मार ही डालूँगा।'

दूसरे किसान भी हँस पड़े। वे जानते थे कि दयाराम दयालु है। वह किसी को मारना तो दूर, किसी को गाली तक नहीं दे सकता। लेकिन यह बात किसी ने शेरसिंह से कह दी। शेरसिंह क्रोध से लाल हो गया। वह उसी दिन से दयाराम से झगड़ने की चेष्टा करने लगा। उसने दयाराम के खेत में अपने बैल छोड़ दिये। बैल बहुत-सा खेत चर गये; किंतु दयाराम ने उन्हें चुपचाप खेत से हाँक दिया।
शेरसिंह ने दयाराम के खेत में जाने वाली पानी की नाली तोड़ दी। पानी बहने लगा। दयाराम ने आकर चुपचाप नाली बाँध दी। इसी प्रकार शेरसिंह बराबर दयाराम की हानि करता रहा; किंतु दयाराम ने के बार भी उसे झगड़ने का अवसर नहीं दिया।

एक दिन दयाराम के यहाँ उनके सम्बन्धी ने लखनऊ के मीठे खरबूजे भेजे। दयाराम सभी किसानों के घर एक-एक खरबूजा भेज दिया; लेकिन शेरसिंह ने उसका खरबूजा यह कहकर लौटा दिया कि 'मैं भिखमंगा नहीं हूँ। मैं दूसरों का दान नहीं लेता।'

बरसात आयी। शेरसिंह एक गाड़ी अनाज भरकर दूसरे गाँव आ रहा था। रास्ते में एक नाले के कीचड़ में उसकी गाड़ी फँस गयी। शेरसिंह के बैल दुबले थे। वे गाड़ी को कीचड़ में से निकल नहीं सके। जब गाँव में इस बात की खबर पहुँची तो सब बोले-'शेरसिंह बड़ा दुष्ट है। उसे रात भर नाले में पड़े रहने दो।'

लेकिन दयाराम ने अपने बलवान बैल पकड़े और नाले की ओर चल पड़ा। लोगों ने उसे रोका और कहा-'दयाराम! शेरसिंह तुम्हारी बहुत हानि की है। तुम तो कहते थे कि `मुझसे लड़ेगा तो उसे मार ही डालूँगा। फिर तुम आज उसकी सहायता करने क्यों जाते हो?'

दयाराम बोला-'मैं आज सचमुच उसे मार डालूँगा। तुम लोग सबेरे उसे देखना।'

जब शेरसिंह ने दयाराम को बैल लेकर आते देखा तो गर्व से बोला-'तुम अपने बैल लेकर लौट जाओ। मुझे किसी की सहायता नहीं चाहिये।'

दयाराम ने कहा-'तुम्हारे मन में आवे तो गाली दो, मन में आवे मुझे मारो, इस समय तुम संकट में हो। तुम्हारी गाड़ी फँसी है और रात होने वाली है। मैं तुम्हारी बात इस समय नहीं मान सकता।'

दयाराम ने शेरसिंह के बैलों को खोलकर अपने बैल गाड़ी में जोत दिये। उसके बलवान बैलों ने गाड़ी को खींचकर नाले से बाहर कर दिया। शेरसिंह गाड़ी लेकर घर आ गया। उसका दुष्ट स्वभाव उसी दिन से बदल गया। वह कहता था-'दयाराम ने अपने उपकार के द्वारा मुझे मार ही दिया। अब मैं वह अहंकारी शेरसिंह कहाँ रहा।' अब वह सबसे नम्रता और प्रेम का व्यवहार करने लगा। बुराई भलाई से जीतना ही सच्ची जीत है। दयाराम ने सच्ची जीत पायी।