♠ द्रौपदी का पुण्य ♠

 
♥ इँसान जैसा करता है कुदरत या भगवान उसे वैसा ही उसे लौटा देता है l ♥

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एक बार द्रौपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी भोर का समय था तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी l

साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोके से उड़ पानी मे चली गयी ओर बह गयी l

सँयोगवस साधु ने जो लँगोटी पहनी वो भी फटी हुई थी l
साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए थोड़ी देर मे सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड़ बढ जाएगी l साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाड़ी मे छिप गया l

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द्रौपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साड़ी जो पहन रखी थी उसमे आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साड़ी देते हुए बोली, '' तात मै आपकी परेशानी समझ गयी l इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए l ''

साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया कि '' जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएगे l ''

और जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रौपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुचायी तो भगवान ने कहा-कर्मो के बदले मेरी कृपा बरसती है क्या कोई पुण्य है द्रोपदी के खाते मे l

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जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब मे मिला जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ गया था l जिसको चुकता करने भगवान पहुच गये द्रोपदी की मदद करने l दुस्सासन चीर खीचता गया और हजारो गज कपड़ा बढता गया l

♦ इँसान यदि सुकर्म करे तो उसका फल सूद सहित मिलता है ओर दुस्कर्म करे तो सूद सहित भोगना पड़ता है l ♦