♠ विपत्ति और घबराहट ♠


एक राजा अपने कुछ सेवकों को साथ लेकर कहीं दूर देश को जा रहा था। रास्ते में कुछ यात्रा समुद्र की थी इसलिए जहाज में बैठकर चलने का प्रबन्ध किया। राजा अपने सेवकों समेत जहाज में सवार हुआ। मल्लाहों ने लंगर खोल दिया।

जहाज जब कुछ दूर आगे चला तो लहरों के थपेड़ों के साथ टकरा कर वह हिलने लगा। सब लोग कई बार यात्रा कर चुके थे इसलिए कोई व्यक्ति इस हिलने डुलने से घबराया नहीं किन्तु एक सेवक जो बिल्कुल नया था। चारों ओर पानी ही पानी और बीच में डगमगाता हुआ जहाज देखकर बुरी तरह घबराने लगा। उसकी सारी देह काँप रही थी। मुँह से घिग्घी बंध रही थी नसों का लोहू पानी हुआ जा रहा था।

उसके साथी अन्य सेवकों ने समझाया, राजा ने ढांढस बंधाया। उसे बार-बार समझाया जा रहा था कि ‘यह विपत्ति देखने में ही बड़ी मालूम देती है वास्तव में तो प्रकृति की साधारण सी हलचल है। हम लोगों को इनसे डरना नहीं चाहिये और धैर्यपूर्वक अच्छा अवसर आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।’ लेकिन इस समझाने बुझाने का उस पर कुछ असर नहीं हुआ। उसका डर और घबराहट बढ़ रहे थे धैर्य छोड़ कर वह घिग्घी बाँधकर रोने लगा।

यात्रा करने वालों में से एक सेवक बहुत बुद्धिमान था। उसने राजा से कहा-महाराज आज्ञा दें तो मैं इनका डर दूर कर सकता हूँ। राजा ने आज्ञा दे दी।

वह उठा और उस बहुत डरने वाले यात्री को उठाकर समुद्र में फेंक दिया। जब तीन चार गोते लग गये तो उसे पानी में से निकाल लिया गया। और जहाज के एक कोने पर बिठा दिया गया। अब न तो वह रो रहा था और न डर रहा था।

राजा ने उस बुद्धिमान सेवक से पूछा इसमें क्या रहस्य है कि तुमने इसे पानी में पटक दिया और अब यह निकला है तो बिलकुल नहीं डर रहा है?

उस सेवक ने हाथ जोड़कर नम्रतापूर्वक कहा- श्रीमान! इससे पहले इसने डूबने का कष्ट नहीं देखा और न यह जहाज का महत्व जानता था। अब इसने वह जानकारी प्राप्त कर ली है तो घबराना छोड़ दिया है।

�� हम साधारण सी विपत्ति को देखकर धैर्य छोड़ देते हैं और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। उस समय हमें स्मरण करना चाहिये दूसरे लोग जो इससे भी हजारों गुनी विपत्तियों में पड़े हैं और उन्हें सह रहे हैं। इस विपत्ति के समय में भी जो सुविधाएं हमें प्राप्त हैं उनके लिये ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिये क्योंकि दूसरे असंख्य मनुष्य उनसे भी वंचित हैं।

♥ अखण्ड ज्योति 1940 दिसम्बर  ♥