♠ प्रणाम की शक्ति ♠



महाभारत का युद्ध चल रहा था, एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर भीष्म पितामह घोषणा कर देते हैं कि वे अगले दिन पांडवों का वध कर देंगे। उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई। भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए। इस दौरान श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा, तुम मेरे साथ अभी चलो। सभी को पता था कि इस परेशानी से बस श्रीकृष्ण ही उन्हें बाहर निकाल सकते हैं।

श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुंचे। शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि, अंदर जाकर पितामह को प्रणाम करो। द्रौपदी ने अंदर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने अखंड सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद दिया। इसके बाद उन्होंने द्रौपदी से आने का कारण पूछा।

उन्होंने कहा कि वे इतनी रात में अकेली यहां कैसे आई है, क्या श्री कृष्ण उन्हें यहां लेकर आए हैं? द्रौपदी ने कहा कि, हां और वे कक्ष के बाहर ही खड़े हैं। यह सुनते ही भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया।भीष्म ने कहा, उन्हें आभास था कि उनके एक वचन को उनके ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते हैं। इसके बाद वे लौट गए।

शिविर से लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि, तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है। इतना ही नहीं श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि प्रणाम में बहुत शक्ति होती है, अगर वह प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य आदि को प्रणाम करती होतीं, वहीं दुर्योधन-दुःशासन आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंतीं, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती।